राजशेखर / इंद्रजीत
( मुनाफा स्टॉक्स)
शेयर बाजार ने आम निवेशकों को ही नहीं बड़े-बड़े दिग्गजों को हैरत में डाल दिया है। बाजार लगातार नीचे की ओर है। जनवरी से अब तक बाजार में निवेशकों का लगभग 150 अरब डालर डूब चुका है। आम निवेशक ही नहीं, बाजार के दिग्गज खिलाड़ी और म्युचुअल फंड भी अरबों डालर गंवा चुके है। यह हाल भारत का ही नहीं दुनिया के एक –दो शेयर बाजारों को छोड़ दें तो सारी दुनिया का एक ही हाल है। बाजार के इस बुरे हाल की कीमत दिग्गज कंपनियों को भी चुकानी पड़ी है। रिलायंस इंड्रसट्रीज, डीएलएफ, यूनीटेक समेत तमाम दिग्गज कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में जबरदस्त गिरावाट आई है। तमाम दिग्गज कंपनियां साल भर के न्यूनतम स्तर पर चल रही हैं। जिसमें टाटा स्टील, रिलायंस इंडस्ट्रीज, जिंदल स्टीलस टाटा पावर सहित तमाम कंपनियां शामिल हैं। यूनिटेक और एचआईडीएल में तो 90 फीसदी से भी ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। खतरनाक स्थिति यह है कि यह सिलसिला रुकनेवाला भी नहीं हैं, क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशकों के बाद अब भारतीय घरेलू फंड भी विकवाली पर उतर आए हैं। यह सिलसिला कहां रुकेगा, अनुमान लगाना कठिन है। अब तो बाजार 5000 तक पहुंचने की बात कही जाने लगी है। अगर बाजार यहां पहुंचता है तो बहुत हैरान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जिन संस्थागत निवेशकों की खरीदारी के कारण बाजार बढ़ा था, वही बिकवाली पर उतर आए हैं। जाहिर है इससे बाजार धराशाई हो रहा है और होगा।
जनवरी में बाजार को पहला झटका लगा था। विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली के कारण बाजार गिरा था। उसके बाद बाजार को समर्थन मिला और सेंसेक्स 18000 के करीब पहुंच गया था। उसके बाद शेयर बाजार गिरने का एक और सिलसिला शुरू हुआ, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। बाजार में मामूली सुधार के बाद फिर गिरावट का दौर शुरू हो जाता है। पिछले कुछ दिनों से तो बहुत ही बुरा हाल है। तमाम इलाज के बावजूद शेयर मार्केट की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही है। पी नोट्स पर से पाबंदी में लचीला रुख अपनाया गया। सीआरआर रेट घटाया गया। इसका कोई फर्क नहीं पड़ा। चिदबंरम ने बाजार को भरोसा दिलाया। इसके बावजूद बाजार नीचे की ओर चलता ही चला जा रहा है। जनवरी में बाजार को जब पहला करंट लगा तो कथित विशेषज्ञों ने बताया कि तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी का खामियाजा भारतीय बाजार को भुगतना पड़ा है। दूसरी वजह महंगाई बताई जा रही थी। हमे साफ तौर पर समझ लेना चाहिए कि बाजार के इस तरह गिरने के पीछे न महंगाई और न ही तेल कीमतों में बढ़ती हुई कीमतें की कोई भूमिका थी। यह तो महज बहाना था। यह बहाना आजा बेपर्दा हो चुका है। कच्चे तेल की कीमत 150 डालर प्रति बैरल से घटकर काफी नीचे आ चुका हैं। महंगाई की बढ़ती दर पर लगाम लग चुकी है। असली वजह थी अमेरिकी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का खस्ता हाल। लेकिन यह सब कुछ बहुत देर से सामने आया, तब तक निवेशक तबाह हो चुके थे। लिमन बद्रर्स समेत तमाम संस्थाएं डूब चुकी है। कुछ और का यही हाल होना है। शेयर बाजार में जबरदस्त चर्चा है कि भारत के भो कई बैंकों का हाल खस्ता है, जिसकी घोषणा देर-सबेर होनी है। कुल मिलाकर हालात बदतर ही है। इन सबके बीच में हमें याद रखने की जरूरत है कि तमाम दिग्गज कंपनियों के शेयर भाव तीन –चार साल के भाव के मुकाबले पचास गुना तक बढ़ गए थे। हमें सोचना चाहिए आखिर इन कंपनियों क्या तीर मार लिया था कि उनके भाव पचास या सौ गुना बढ़ गए थे। कंपनी वही, मुनाफे की रफ्तार भी वही। अपवाद छोड़कर लगभग वही 15-20 की बढ़ोत्तरी। जबकि 15-20 फीसदी लाभ तो किसी भी कंपनी के लिए सामान्य बात है। सच्चाई तो यह है कि बाजार इन शेयरों के साथ न्याय कर रहा है। इस न्याय को हमें तहे दिल से स्वीकार करना चाहिए। अगली बार स्टाक बाजार में पैसा लगाने से पहले बारीकी से देख लें कि क्या उस कंपनी का शेयर जिस भाव आप ले रहे हैं उसके लायक है या नहीं।
1 comment:
वो भी दिवाली थी और ये भी दिवाला है
बिखरा हुआ चमन है उजड़ा हुआ माली है .
हालत अभी और भी ख़राब होंगे. बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए . धन्यवाद.
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