यहां है बाजार को मात देने का माद्दा
Posted by अनिल रघुराज at 08:59 Add comments
Sep 17 2011
शेयर बाजार के बारे में एक सिद्धांत नहीं, बल्कि परिकल्पना है जिसके मुताबिक, कोई भी निवेशक न तो दबे हुए मूल्य के स्टॉक को खरीद सकता है और न ही बढ़े हुए मूल्य के स्टॉक को बेच सकता है। इसे ईएमएच, एफिशिएंट मार्केट हाइपोथिसिस कहते हैं जिसे हम हिंदी में कुशल बाजार परिकल्पना कह सकते हैं। यह परिकल्पना सस्ते में खरीदो, महंगे में बेचों के सूत्र के परखचे उड़ा देती है। कहती है कि कोई भी निवेशक बाजार को लंबे समय में मात नहीं दे सकता। खैर, आगे बढ़ने के पहले अपने दो छोटे अनुभव।
आइनॉक्स लीज़र के बारे में हमने 16 अगस्त को कहा था कि, “दो महीने में इससे 10-20 फीसदी मुनाफा कमाया जा सकता है। 47 से 52 रुपए तक की रेंज है इसकी।” तब इसका भाव 43 रुपए था। करीब तीन हफ्ते में ही यह 8 सितंबर को 47.50 से 51 रुपए की रेंज तक चला गया और उस दिन 49.55 रुपए पर बंद हुआ था। हमने साफ कहा था कि दो महीने में जब भी यह स्तर हासिल हो जाए, बेचकर निकलें। फिलहाल कल, 16 सितंबर को यह गिरकर 45.55 रुपए पर बंद हुआ है।
पार्श्वनाथ डेवलपर्स के बारे में हमने इसी हफ्ते मंगलवार, 13 सितंबर को लिखा था कि यह 10 फीसदी रिटर्न यूं ही दे सकता है। तब उसका पिछला बंद भाव 59.50 रुपए था। हमने कहा था कि, “यह शेयर यहां से 65-66 रुपए तक जा सकता है। इसमें ज्यादा से ज्यादा एक महीने का वक्त लग सकता है। हो सकता है कि ऐसा जल्दी भी हो जाए। अगले कुछ दिनों में हो जाए।” चार दिन में ही यह लक्ष्य हासिल हो गया। पार्श्वनाथ डेवलपर्स 66.70 रुपए तक जाने के बाद 65.95 रुपए पर बंद हुआ है।
जाहिर है कि हमने लंबे समय में तो नहीं, छोटे समय में सस्ते में खरीदकर महंगे में बेचने का माद्दा दिखा दिया और बाजार को मात दे दी। इसके लिए मैं अपने पुराने बंधु व सहयोगी राजशेखर को बधाई देना चाहता हूंऔर कामना करता हूं कि वे अपने सूत्रों से ऐसी खबरें अर्थकाम के पाठकों के लिए पेश करते रहेंगे। मजे की बात है कि कुशल बाजार परिकल्पना (ईएमएच) कहती है कि वित्तीय बाजार सूचनाओं के बारे में एकदम दक्ष या कुशल होता है। मतलब, किसी भी ट्रेड होनेवाली आस्ति के भाव सारी उपलब्ध खबरों या सूचनाओं को जज्ब कर चुके होते हैं और किसी भी नई सूचना को आते ही सोख लेते हैं।
दूसरे शब्दों में शेयर हमेशा सारी उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर अपने वाजिब मूल्य पर ट्रेड हो रहे होते हैं। यहां कोई बंदा नई सूचना नहीं ला सकता क्योंकि बाजार के हाथ इतने लंबे है और वह खबरों व सूचनाओं के मामले में इतना दक्ष है कि कोई खबर उससे बच नहीं सकती। दुनिया के सबसे सफल निवेशक वॉरेन बफेट इस सिद्धांत को गलत मानते हैं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि शेयर बाजार नई-नई सूचनाओं या खबरों का खेल है। जिसके पास जितनी खास खबर जितनी जल्दी होगी, वह उतनी ही तेजी से यहां औरों को मात कर सकता है।
बाजार हमेशा खबरों या सूचनाओं की समता की बात करता है। यहां कायदन समान रूप से सबको उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर ट्रेडिंग होनी चाहिए। इसीलिए अंदर की सूचनाओं के आधार पर होनेवाली इनसाइडर ट्रेडिंग को गुनाह माना गया है। लेकिन अपना बाजार अविकसित है, इसमें कोई दो राय नहीं है। इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि यहां सूचनाओं की विषमता है। सबसे बडी विषमता तो यही है कि यहां सारी सूचनाएं, सारी धारणाएं अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। मूलतः हिंदी या अन्य भारतीय भाषाएं जाननेवालों के सामने मजबूरी है कि वे अंग्रेजी अच्छी-तरह जानें-समझें। नहीं तो भारत की विकासगाथा के फल को नहीं चख सकते।
दुनिया के किसी भी स्वाभिमानी या विकसित देश में ऐसा नहीं हो सकता कि उसके बाशिंदों के लिए कोई पराई भाषा विकास की शर्त बन जाए। और, वे इस पर गर्व भी करें। 18-19वीं सदी के रूस में लैटिन भाषा को लेकर ऐसा ही भाव था, ऐसा आभास मुझे लियो टॉलस्टॉय के उपन्यास युद्ध और शांति (वॉर एंड पीस) को सालों पहले पढ़ते हुआ था। लेकिन आज भी हम औपनिवेशिक गुलामी की जुबान को सिर पर बैठाए हुए थे। अरे, चीन अगर हमसे दो साल बाद 1949 में मुक्त होने के बाद इतनी तेजी से आगे बढ़ा है तो उसके पीछे एक अहम पहलू यह है कि उसने अपनी भाषा को कभी नहीं छोड़ा। वहां भी अग्रेजी सीखी जा रही है। लेकिन वहां चीनी जानना हिकारत और अंग्रेजी जानना गर्व की बात नहीं है। जर्मनी, फ्रांस, जापान हर जगह अपनी भाषा को सर्वोच्च स्वीकृति हासिल है।
खैर, बात लंबी होने लगी है। लेकिन यह एक ऐसी कचोट है जिसको लेकर मैं बहक जाता हूं। अंग्रेजी में पारंगत हूं। जर्मन भी जानता हूं। लेकिन अकेले मेरे जानने से तो गांव-गिराव के उन अपने लोगों का तो भला नहीं होगा, जिनके बीच से मैं निकला हूं और जिनके प्रति मेरी देनदारी बनती है। उसी को चुकाने की, उससे उऋण होने की कोशिश कर रहा हूं। बहुत कुछ नहीं कर सकता। लेकिन इतना भरोसा है कि सूचनाओं के मामले में जो अघोषित विषमता है, उसे जरूर दूर किया जा सकता है।
हम यह भी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि आम भारतीय अवाम कहीं से हीन नहीं है। हिंदी समाज भी ऐसी सूचनाएं ला सकता है जो फिरंगियों या उनकी शोहबत में ऐश कर रहे खिलाड़ियों के पास नहीं है। आज अगर हम आइनॉक्स लीज़र और पार्श्वनाथ डेवलपर्स में पहले से खबरें लाकर आप तक पहुंचा सके हैं तो यह आगाज है कि इस बात का कि अपनी मिट्टी, अपने लोगों और अपनी भाषा में कितना माद्दा है। लेकिन ऐसी शेयर सलाहों के बारे में हम पुरानी बात फिर से दोहरा दें, “इसके पीछे कोई फंडामेंटल का तड़का नहीं है। सीधे-सीधे बाजार की मौजूदा विकृत शक्तियां का खेल है।”
(अर्थकाम ) http://www.arthkaam.com/we-have-guts-to-beat-the-market/13179/
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