Saturday, June 25, 2011

पी नोट्स फिर रंगत में, पीछे कौन काला धन या पुराने खिलाड़ी



राजशेखर

ग्रीस की खराब आर्थिक हालात के कारण पूरा यूरोप चिंतित है। भारत में महंगाई की स्थिति सोचनीय है। इस हालात में बदनाम पी नोट्स (पार्टिसिपेटरी नोट्स ) के जरिए भारतीय शेयर बाजार में एक बार फिर बड़े पैमाने पर निवेश शुरू हो गया है। विदेशी संस्थागत निवेशकों के कुल निवेश में पी नोट्स की हिस्सेदारी मई महीने में 19.5 फीसदी तक पहुंच चुकी थी।
सेबी के मुताबिक अप्रैल में यह आंकड़ा 15 फीसदी ही था। हालांकि यह आंकड़ा जनवरी 2008 के मुकाबले कम है। जब भारतीय शेयर बाजार में भूचाल आ गया था। दो दिन में बाजार लगभग 4000 अंकों तक गिर गया था। पी नोट्स के जरिए मई में निवेश 211199 करोड़ था। मई 2008 के बाद से यह अब तक की सबसे खतरनाक स्थिति है। उस समय यह आंकड़ा 2349933 करोड़ था। फरवरी 2009 में जब शेयर बाजार जमीन पर आ गया था, तब यह घट कर 60948 करोड़ रह गया था।
इसका यह मतलब नहीं है कि बाजार तबाह होने जा रहा है। लेकिन हमें याद रखने की जरुरत है कि इस तरह के हालात के बाद भारतीय शेयर बाजार धराशाई हो गया था। लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है। स्विट्जरलैड समेत तमाम देशों से काला धन तेजी से निकल रहा है। आशंका है कि यह काला धन पी नोट्स के जरिए शेयर बाजारों में आने की शुरुआत तो नहीं हुई है। अगर काला धन शेयर बाजार में लग रहा है तो बाजार धराशाई होने की आशंका कम रहेगी। लेकिन अगर 2007 के पुराने खिलाड़ी वापस आ गए हैं तो यह खतरे की घंटी हो सकती है। पी नोट्स के जरिए निवेश शेयर बाजार के लिए हमेशा खतरनाक माना जाता है। क्योंकि इसके जरिए शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों की जानकारी गुप्त रहती है। इसमें तमाम हेज फंड पैसा लगाते हैं, जो भारत में पंजीकृत नहीं है। इसके अलावा तमाम गलत लोगों का पैसा इस रास्ते निवेश होने की आशंका रहती है। पी नोट्स के जरिए निवेश बढ़ने से सेबी सतर्क है। जून 2007 में विदेशी निवेश में पी नोट्स का आंकड़ा 55.7 फीसदी तक पहुंच गया था। कुछ समय बाद शेयर बाजार किस तरह धराशाई हुआ सारा देश जानता है। बाजार में स्थिरता आने के बाद से पी नोट्स के जरिए निवेश लगातार घटता रहा है। हाल के महीनों में कभी भी यह आंकड़ा 18 फीसदी से ऊपर नहीं गया।

1 comment:

Anonymous said...

phir se recession aane wala hai kya?

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